पापिष्ठा ये दुराचारा देवब्राह्मणनिन्दका:। अपथ्यभोजनास्तेषां अकाले मरणं ध्रुवम् ॥ “जो लोग पापिष्ठ अर्थात् अत्यन्त पापी तथा दुराचार या गन्दी आदतों वाले अथवा दुराचारी होते हैं, जो ईश्वर के अस्तित्त्व के विरुद्ध हैं, जो वैष्णवों तथा ब्राह्मणों का अनादर करते हैं और सर्वभक्षी हैं उनकी असामयिक मृत्यु निश्चित है।” कहा जाता है कि कलियुग में मनुष्य की अधिकतम आयु एक सौ वर्षों की होती है, किन्तु ज्यों-ज्यों लोग अधम होते जाते हैं, उनकी आयु घटती जाती है (प्रायेणाल्पायुष:)। चूँकि अब अजामिल सारे पापफलों से मुक्त था, इसलिए उसकी आयु बढ़ा दी गई थी, यद्यपि उसे तुरन्त मरना था। जब विष्णुदूतों ने देखा कि अजामिल उनसे कुछ कहना चाह रहा है, तो वे उसे परम भगवान् का गुणगान करने का अवसर देने के उद्देश्य से अन्तर्धान हो गये। चूँकि उसके सारे पापफल नष्ट हो चुके थे, अत: अब वह परम भगवान् की महिमा का गायन करने के लिए तत्पर था। दरअसल, जब तक कोई सारे पापकर्मों से पूरी तरह मुक्त नहीं हो जाता वह भगवान् का महिमागायन नहीं कर सकता। इसकी पुष्टि स्वयं कृष्ण ने भगवद्गीता (७.२८) में की है :— येषां त्वन्तगतं पापं ज्ञानानां पुण्यकर्मणाम्। ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रता: ॥ “जिन मनुष्यों ने पूर्वजन्मों में तथा इस जन्म में पुण्यकर्म किये हैं और जिनके पापकर्मों का पूर्णतया उच्छेदन हो चुका होता है और जो मोह के द्वन्द्वों से मुक्त हो जाते हैं, वे संकल्पपूर्वक मेरी सेवा में तत्पर होते हैं।” विष्णुदूतों ने अजामिल को भक्ति से अवगत कराया जिससे वह तुरन्त भगवद्धाम वापस जाने के योग्य बन सके। भगवान् का गुणगान करने के लिए उसकी उत्सुकता बढ़ाने के उद्देश्य से वे अन्तर्धान हो गये जिससे उनकी अनुपस्थिति में वह वियोग का अनुभव कर सके। वियोगावस्था में भगवान् का गुणगान अति तीव्र हो जाता है। |