उदाहरणार्थ, इस श्लोक की टीका करते हुए श्रीधर स्वामी ने निम्नलिखित उद्धरण दिया है— सायं प्रातर्गृणन् भक्त्या दु:खग्रामाद् विमुच्यते “यदि कोई अत्यन्त भक्तिपूर्वक संध्या तथा प्रात: भगवन्नाम का सदैव उच्चारण करता है, तो वह सारे भौतिक कष्टों से मुक्त हो सकता है।” अन्य उद्धरण से इसकी पुष्टि होती है कि यदि कोई प्रतिदिन अतीव आदरपूर्वक भगवन्नाम का निरन्तर श्रवण करता है, तो वह मुक्ति प्राप्त कर सकता है (अनुदिनम्-इदम् आदरेण शृण्वन्)। अन्य उद्धरण कहता है— श्रवणं कीर्तनं ध्यानं हरेरद्भुतकर्मण:। जन्मकर्मगुणानां च तदर्थेऽखिलचेष्टितम् ॥ “मनुष्य को चाहिए कि वह सदैव भगवान् के असामान्य रूप से अद्भुत कार्यों का सदैव कीर्तन तथा श्रवण करे, वह इन कार्यों का ध्यान करे तथा भगवान् को प्रसन्न करने का प्रयास करे” (भागवत ११.३.२७)। श्रीधर स्वामी पुराणों से भी उद्धरण देते हैं। पापक्षयश्च भवति स्मरतां तमहर्निशिम्—भगवान् के चरणकमलों का दिन रात (अहर्निशम्) स्मरण करके मनुष्य सारे पापफलों से मुक्त हो सकता है। इसके आगे वे भागवत (६.३.३१) से उद्धरण देते हैं— तस्मात् सङ्कीर्तनं विष्णोर्जगन्मंगलमंहसाम्। महतामपि कौरव्य विद्ध्यैकान्तिक निष्कृतम् ॥ ये सारे उद्धरण सिद्ध करते हैं कि जो व्यक्ति भगवान् के पवित्र कार्यों, नाम, यश तथा रूप के कीर्तन एवं श्रवण में निरन्तर लगा रहता है, वह मुक्त है। जैसाकि इस श्लोक में अद्भुत ढंग से कहा गया है—एतावतालम् अघनिर्हरणाय पुंसाम्—केवल भगवन्नाम का उच्चारण करने से मनुष्य सारे पापफलों से मुक्त हो जाता है। इस श्लोक में प्रयुक्त अलम् शब्द सूचित करता है कि भगवन्नाम का उच्चारण करना ही पर्याप्त है। यह शब्द विभिन्न आशयों से प्रयुक्त किया जाता है। जैसाकि संस्कृत भाषा के सबसे प्रामाणिक कोश अमरकोश में कहा गया है—अलं भूषणपर्याप्तिशक्तिवारणवाचकम्—अलम् शब्द का प्रयोग “आभूषण” “पर्याप्त,” “शक्ति” तथा “संयम” अर्थों में किया जाता है। यहाँ पर अलम् शब्द यह सूचित करने के लिए प्रयुक्त किया गया है कि किसी अन्य विधि की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि भगवन्नाम का उच्चारण ही पर्याप्त है। यदि कोई गलत ढंग से भी उच्चारण करता है, तो वह उच्चारण करने से सारे पापफलों से मुक्त हो जाता है। पवित्र नाम की इस उच्चारण-शक्ति का प्रमाण है अजामिल की मुक्ति। जब अजामिल ने नारायण के पवित्र नाम का उच्चारण किया, तो उसे परमेश्वर का ठीक से स्मरण नहीं आया; बजाय इसके उसने अपने पुत्र का स्मरण किया। यह तो निश्चित है कि मृत्यु के समय अजामिल अत्यधिक शुद्ध नहीं था। वह तो महान् पापी के रूप में विख्यात था। इतना ही नहीं, मृत्यु के समय मनुष्य की शारीरिक दशा पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाती है, अत: ऐसी विषम स्थिति में अजामिल के लिए स्पष्ट रूप से उच्चारण कर सकना अत्यन्त कठिन होता। तो भी, अजामिल ने एकमात्र भगवन्नाम के नाम का उच्चारण करने से मुक्ति प्राप्त की। अतएव, उन लोगों के विषय में क्या कहा जाये जो अजामिल जितने पापी नहीं हैं? यह निष्कर्ष निकलता है कि मनुष्य को दृढ़व्रत होने के साथ ही भगवन्नाम का—हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे— कीर्तन करना चाहिए, क्योंकि इस तरह वह कृष्ण की कृपा से माया के पाश से निश्चित रूप से छूट जाएगा। हरे कृष्ण मंत्र का कीर्तन ऐसे पुरुषों के लिए भी संस्तुत किया जाता है, जो अपराध करते हैं, क्योंकि कीर्तन करते रहने से वे क्रमश: निरपराध भाव से कीर्तन करने लगेंगे। निरपराध भाव से हरे कृष्ण मंत्र का कीर्तन करने से मनुष्य कृष्ण के प्रति अपने प्रेम को बढ़ाता है। जैसाकि श्री चैतन्य महाप्रभु ने कहा है—प्रेमा पुमर्थो महान्—मनुष्य की मुख्य गन्तव्य पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् के प्रति अपना लगाव तथा उनके प्रति अपने प्रेम को बढ़ाने की होनी चाहिए। इस सम्बन्ध में श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर श्रीमद्भागवत के निम्नलिखित श्लोक को (११.१९.२४) उद्धृत करते हैं— एवं धर्मैमर्नुष्याणां उद्धावात्मनि वेदिनाम्। मयि सञ्जायते भक्ति: कोऽन्योऽर्थोऽस्यावशिष्यते ॥ “हे उद्धव! मानव समाज के लिए परम धार्मिक प्रणाली वह है, जिससे मनुष्य मेरे प्रति अपने सुप्त प्रेम को जागृत कर सके।” इस श्लोक की टीका करते हुए श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर भक्ति शब्द का वर्णन प्रेमैवोक्त: से करते हैं। क: अन्य: अर्थ: अस्य—भक्ति के समक्ष मुक्ति की क्या आवश्यकता है? श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर पद्मपुराण का निम्नलिखित श्लोक भी उद्धृत करते हैं— नामापराधयुक्तानां नामान्येव हरन्त्यघम्। अविश्रान्तिप्रयुक्तानि तान्येवार्थकराणि च ॥ यदि कोई शुरू-शुरू में अपराधपूर्वक भी हरे कृष्ण मंत्र का कीर्तन करता है, तो वह बारम्बार कीर्तन करने से ऐसे पापों से मुक्त हो जायेगा। पापक्षयश्च भवति स्मरतां तमहर्निशम्—यदि कोई श्री चैतन्य महाप्रभु की संस्तुति का पालन करते हुए दिन रात कीर्तन करता है, तो वह सारे पापफलों से मुक्त हो जाता है। निम्नलिखित श्लोक को उद्धृत करने वाले श्री चैतन्य महाप्रभु ही थे— हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम्। कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा ॥ “कलह तथा पाखण्ड के इस युग में उद्धार का एकमात्र साधन भगवन्नाम का कीर्तन है। इसके अतिरिक्त कोई अन्य उपाय नहीं, कोई अन्य उपाय नहीं, कोई अन्य उपाय नहीं।” यदि कृष्णभावनामृत आन्दोलन के सदस्य श्री चैतन्य महाप्रभु की इस संस्तुति का दृढ़ता से पालन करें तो उनकी स्थिति सदैव सुरक्षित रहे। |