अलं दग्धैर्द्रुमैर्दीनै: खिलानां शिवमस्तु व: ।
वार्क्षी ह्येषा वरा कन्या पत्नीत्वे प्रतिगृह्यताम् ॥ १५ ॥
शब्दार्थ
अलम्—पर्याप्त; दग्धै:—जल रहे; द्रुमै:—वृक्षों द्वारा; दीनै:—बेचारे; खिलानाम्—शेष वृक्षों का; शिवम्—सर्व सौभाग्य; अस्तु—हो; व:—तुम लोगों का; वार्क्षी—वृक्षों से पालित; हि—निस्सन्देह; एषा—यह; वरा—रुचि; कन्या—कन्या, पुत्री; पत्नीत्वे—पत्नी के रूप में; प्रतिगृह्यताम्—स्वीकार करो ।.
अनुवाद
अब इन बेचारे वृक्षों को जलाने की आवश्यकता नहीं है। जो वृक्ष शेष हैं उन्हें सुखपूर्वक रहने दें। निस्सन्देह, तुम लोगों को भी सुखी रहना चाहिए। यहाँ पर एक सुयोग्य सुन्दर लडक़ी है, जिसका नाम मारिषा है और जिसका पालन-पोषण इन वृक्षों ने अपनी पुत्री के रूप में किया है। तुम लोग इस सुन्दर लडक़ी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर सकते हो।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥