जब सरकार कृषि की उपेक्षा करती है, जो अन्न उत्पादन के लिए आवश्यक है, वह भूमि व्यर्थ के वृक्षों से ढक जाती है। निस्सन्देह, अनेक वृक्ष उपयोगी होते हैं, क्योंकि वे फल-फूल उत्पन्न करते हैं, किन्तु दूसरे अनेक वृक्ष अनावश्यक होते हैं। उनका उपयोग ईंधन के लिए किया जा सकता है और भूमि को साफ करके उसमें खेती की जा सकती है। जब सरकार लापरवाही बरतती है, तो अन्नोत्पादन कम होता है। जैसा कि भगवद्गीता (१८.४४) में कहा गया है— कृषिगोरक्ष्यवाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम्—वैश्यों के स्वभाव के अनुसार उनका उचित कार्य खेती करना तथा गौवों की रक्षा करना है। सरकार तथा क्षत्रियों का कर्तव्य है कि वे यह देखें कि तृतीय वर्ण के सदस्य वैश्य जो न तो ब्राह्मण हैं, न क्षत्रिय, ठीक से काम में लगें। क्षत्रिय मनुष्यों की रक्षा करने के निमित्त होते हैं, जबकि वैश्य उपयोगी पशुओं, विशेषतया गायों, की रक्षा करने के निमित्त हैं। |