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श्लोक |
एषा पञ्चजनस्याङ्ग दुहिता वै प्रजापते: ।
असिक्नी नाम पत्नीत्वे प्रजेश प्रतिगृह्यताम् ॥ ५१ ॥ |
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शब्दार्थ |
एषा—यह; पञ्चजनस्य—पञ्चजन की; अङ्ग—हे पुत्र; दुहिता—पुत्री; वै—निस्सन्देह; प्रजापते:—अन्य प्रजापति; असिक्नी नाम—असिक्नी नामक; पत्नीत्वे—अपनी पत्नी के रूप में; प्रजेश—हे प्रजापति; प्रतिगृह्यताम्—स्वीकार करो ।. |
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अनुवाद |
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हे पुत्र दक्ष! प्रजापति पञ्चजन के असिक्नी नामक पुत्री है, जिसे मैं तुम्हें प्रदान करता हूँ जिससे तुम उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर सको। |
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