सृष्टि स्थिति प्रलयसाधनशक्तिरेका छायेव यस्य भुवनानि बिभर्ति दुर्गा। माया शक्ति, दुर्गा, सृष्टि-स्थिति-प्रलय का कार्यभार सँभालती है और वह भगवान् के निर्देशन में कार्य करती है (मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते सचराचरम्)। जब मनुष्य अविद्या की नदी में गिर जाता है, तो वह लहरों द्वारा इधर-उधर उछाला जाता है, किन्तु वही माया उसे बचा भी सकती है, यदि वह कृष्ण की शरण में जाता है या कृष्णभावनाभावित बन जाता है। कृष्णभावनामृत ज्ञान तथा तपस्या है। कृष्णभावनाभावित व्यक्ति वैदिक वाङ्मय से ज्ञान ग्रहण करता है, किन्तु साथ ही साथ उसे तपस्या करनी चाहिए। भौतिक जीवन से छुटकारा पाने के लिए मनुष्य को कृष्णभावनामृत ग्रहण करना चाहिए। अन्यथा, यदि वह तथाकथित विज्ञान की प्रगति में बुरी तरह लगा रहेगा तो उसे कौन सा लाभ प्राप्त होगा? यदि वह प्रकृति की लहरों द्वारा बहा ले जाया जाता है, तो महान् विज्ञानी या दार्शनिक होने का क्या अर्थ? संसारी विज्ञान तथा दर्शन भी भौतिक सृष्टियाँ हैं। मनुष्य को समझना चाहिए कि माया किस तरह कार्य करती है और मनुष्य किस तरह अविद्या-रूपी नदी की उफनती लहरों से छुड़ाया जा सकता है। यह उसका प्रथम कर्तव्य है। |