नाम अमनि, उदित हय, भकत-गीत-सामे ॥ अमिय-धारा, वरिषे घन, श्रवण-युगले गिया । भकत-जन, सघने नाचे, भरिया आपन हिया ॥ माधुरी-पूर, आसब पशि’, माताय जगत्-जने। केह वा कांदे केह वा नाचे, केह माते मने मने ॥ पञ्च-वदन, नारदे धरि’ प्रेमेर सघन रोल। कमलासन, नाचिया बले’ ‘बोल बोल हरि बोल’ ॥ सहस्त्रानन, परम-सुखे, ‘हरि हरि’ बलि” गाय। नाम-प्रमावे, मातिल विश्व नाम-रस सबे पाय ॥ श्रीकृष्ण-नाम, रसने स्फुरि’, पुरा’ल आमार आश। श्री-रूप-पदे याचये इहा भकति विनोद दास ॥ इस गीत का तात्पर्य है कि महात्मा नारद मुनि राधिकारमण अर्थात् कृष्ण के दूसरे नाम की ध्वनि निकलाते हुए एक तारवाला यंत्र, वीणा, बजाते हैं। ज्योंही वे तार झंकारते हैं सारे भक्त अतीव सुन्दर ध्वनि करने लगते हैं। तारवाले यंत्र के साथ गायन अमृत की वर्षा जैसा प्रतीत होता है और सारे भक्त भाव-विभोर होकर जी-भर नाचते हैं। नाचते समय वे भाव में उन्मत्त हो जाते हैं मानो माधुरीपूर नामक शराब पी रहे हों। उनमें से कुछ चिल्लाते हैं, कुछ नाचते हैं और कुछ खुलकर न नाचने के कारण मन ही मन नाचते हैं। शिवजी नारद मुनि का आलिंगन करते हैं और उनसे भावविष्ट वाणी में बातें करने लगते हैं। शिवजी को नारद के साथ नाचते देखकर ब्रह्माजी भी यह कहते हुए सम्मिलित हो जाते हैं, “सभी लोग उच्चारण करो—हरिबोल! हरिबोल!” स्वर्ग के राजा इन्द्र भी क्रमश: प्रसन्नतापूर्वक उनके साथ हो लेते हैं और नाचने तथा हरिबोल! हरि बोल! का उच्चारण करने लगते हैं। इस तरह ईश्वर के पवित्र नाम की दिव्य ध्वनि के प्रभाव से सारा ब्रह्माण्ड भावमय हो जाता है। भक्तिविनोद ठाकुर कहते हैं “जब ब्रह्माण्ड भावमय हो जाता है, तो मेरी इच्छा तुष्ट हो जाती है। अतएव मैं रूप गोस्वामी के चरणकमलों पर प्रार्थना करता हूँ कि हरे नाम का यह कीर्तन इसी तरह उत्तम ढंग से चलता रहे।” ब्रह्माजी नारदमुनि के गुरु हैं और नारद मुनि व्यास देव के गुरु हैं तथा व्यासदेव मध्वाचार्य के गुरु हैं। इस तरह गौड़ीय-माध्व-सम्प्रदाय नारदमुनि की गुरु परम्परा में आता है। इस गुरु-परम्परा के सदस्यों, दूसरे शब्दों में, कृष्णभावनामृत आन्दोलन के सदस्यों को चाहिए कि हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे की दिव्य ध्वनि का कीर्तन करते हुए नारद मुनि के चरणचिह्नों का अनुसरण करें। उन्हें हरे कृष्ण मंत्र की ध्वनि तथा भगवद्गीता, श्रीमद्भागवत एवं चैतन्य चरितामृत के उपदेशों द्वारा पतितात्माओं का उद्धार करने के लिए सर्वत्र जाना चाहिए। इससे भगवान् प्रसन्न होंगे। यदि कोई वास्तव में नारदमुनि के उपदेशों का पालन करे तो वह आध्यात्मिक दृष्टि से प्रगति कर सकता है। यदि कोई नारद मुनि को प्रसन्न कर लेता है, तो भगवान् हृषीकेश भी प्रसन्न हो जाते हैं (यस्य प्रसादाद् भगवत्प्रसाद:)। वर्तमान (सन्निकट का) गुरु नारदमुनि का प्रतिनिधि होता है। नारदमुनि के उपदेशों तथा वर्तमान गुरु के उपदेशों में कोई अन्तर नहीं होता। नारद मुनि तथा वर्तमान गुरु दोनों ही कृष्ण की उन्हीं शिक्षाओं का प्रवचन करते हैं, जिन्हें कृष्ण भगवद्गीता में कहते हैं (१८.६५-६६)— मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु। मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ॥ सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: ॥ “सदैव मेरा चिन्तन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो। इस प्रकार तुम निश्चित रूप से मेरे पास आओगे। मैं तुम्हें वचन देता हूँ, क्योंकि तुम मेरे प्रिय मित्र हो। समस्त प्रकार के धर्म का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ। मैं समस्त पापों के फल से तुम्हारा उद्धार कर दूँगा। शोक मत करो।” |