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श्लोक |
अर्कस्य वासना भार्या पुत्रास्तर्षादय: स्मृता: ।
अग्नेर्भार्या वसोर्धारा पुत्रा द्रविणकादय: ॥ १३ ॥ |
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शब्दार्थ |
अर्कस्य—अर्क की; वासना—वासना; भार्या—पत्नी; पुत्रा:—कई पुत्र; तर्ष-आदय:—तर्ष इत्यादि; स्मृता:—विख्यात; अग्ने:—अग्नि की; भार्या—पत्नी; वसो:—वसु की; धारा—धारा; पुत्रा:—पुत्र; द्रविणक-आदय:—द्रविणक इत्यादि ।. |
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अनुवाद |
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अर्क की पत्नी वासना के गर्भ से कई पुत्र उत्पन्न हुए जिनमें तर्ष प्रमुख था। अग्नि नामक वसु की पत्नी धारा से द्रविणक इत्यादि कई पुत्र उत्पन्न हुए। |
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