कृत्तिकादीनि नक्षत्राणीन्दो: पत्न्यस्तु भारत ।
दक्षशापात् सोऽनपत्यस्तासु यक्ष्मग्रहार्दित: ॥ २३ ॥
शब्दार्थ
कृत्तिका-आदीनि—कृत्तिका इत्यादि; नक्षत्राणि—नक्षत्रगण; इन्दो:—चन्द्रदेव की; पत्न्य:—पत्नियाँ; तु—लेकिन; भारत—हे महाराज परीक्षित, भारत के वंशधर; दक्ष-शापात्—दक्ष के शाप से; स:—चन्द्रदेव; अनपत्य:—सन्तानरहित; तासु—अनेक पत्नियों में; यक्ष्म-ग्रह-अर्दित:—क्षय रोग से पीडि़त ।.
अनुवाद
हे भारतश्रेष्ठ महाराज परीक्षित! कृत्तिका नामक राशियाँ चन्द्रदेव की पत्नियाँ थीं। चूँकि प्रजापति दक्ष ने चन्द्रदेव को शाप दिया था कि उसे क्षय रोग हो जाये, अत: किसी भी पत्नी से कोई सन्तान नहीं हुई।
तात्पर्य
चूँकि चन्द्रदेव रोहिणी पर विशेष अनुरक्त था, अत: वह अन्य पत्नियों की उपेक्षा करने लगा। अत:
अपनी कन्याओं के इस शोक को देखकर प्रजापति दक्ष अत्यन्त क्रुद्ध हुए और उसे शाप दे दिया।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥