तम्—उस (विश्वरूप) को; वव्रिरे—पुरोहित के रूप में स्वीकार किया; सुर-गणा:—देवताओं ने; स्वस्रीयम्—पुत्री का पुत्र; द्विषताम्—शत्रु असुरों की; अपि—यद्यपि; विमतेन—अपमानित होकर; परित्यक्ता:—छोड़े हुए; गुरुणा—अपने गुरु; आङ्गिरसेन—बृहस्पति द्वारा; यत्—क्योंकि ।.
अनुवाद
यद्यपि विश्वरूप देवताओं के कट्टर शत्रु असुरों की पुत्री का पुत्र था, किन्तु उन्होंने ब्रह्मा की आज्ञा से उसे अपना पुरोहित बनाना स्वीकार किया। देवताओं द्वारा अपमान किये जाने पर गुरु बृहस्पति ने इनका परित्याग कर दिया था, इसीलिए इन्हें पुरोहित की आवश्यकता पड़ी।
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के छठे स्कन्ध के अन्तर्गत, “दक्ष की कन्याओं का वंश” नामक नामक छठे अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥