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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 8: नारायण-कवच  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  6.8.20 
मां केशवो गदया प्रातरव्याद्
गोविन्द आसङ्गवमात्तवेणु: ।
नारायण: प्राह्ण उदात्तशक्ति-
र्मध्यन्दिने विष्णुररीन्द्रपाणि: ॥ २० ॥
 
शब्दार्थ
माम्—मुझको; केशव:—भगवान् केशव; गदया—अपनी गदा से; प्रात:—प्रात:काल; अव्यात्—रक्षा करें; गोविन्द:— भगवान् गोविन्द; आसङ्गवम्—दिन के चढ़े; आत्त-वेणु:—अपनी बाँसुरी लेकर; नारायण:—चतुर्भुज भगवान् नारायण; प्राह्ण:—दोपहर के पूर्व; उदात्त-शक्ति:—विभिन्न प्रकार की शक्तियों को वश में रखने वाले; मध्यम्-दिने—दोपहर को; विष्णु:—भगवान् विष्णु; अरीन्द्र-पाणि:—शत्रुओं को मारने के लिए हाथ में चक्र धारण किये ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् केशव दिन के पहले चरण में अपनी गदा से तथा दिन के दूसरे चरण में अपनी बाँसुरी से गोविन्द मेरी रक्षा करें। सर्व शक्तियों से सम्पन्न भगवान् नारायण दिन के तीसरे चरण में और शत्रुओं का वध करने के लिए हाथ में चक्र धारण करनेवाले भगवान् विष्णु दिन के चौथे चरण में मेरी रक्षा करें।
 
तात्पर्य
 वैदिक ज्योतिर्विज्ञान के अनुसार दिन तथा रात को बारह-बारह घंटों में विभाजित न करके तीस घटिकाओं (प्रत्येक २४ मिनट की) में विभाजित किया जाता है। सामान्यत: प्रत्येक दिन तथा रात छ: समान चरणों में बँटी होती है जिनमें से प्रत्येक भाग पाँच घटिका का होता है। दिन तथा रात के इन विभिन्न विभागों में से प्रत्येक में भगवान् को भिन्न-भिन्न नामों से रक्षा के लिए सम्बोधित किया जा सकता है। मथुरा नामक पवित्र स्थान के स्वामी भगवान् केशव दिन के प्रथम चरण के तथा वृन्दावन के अधीक्षक गोविन्द दिन के दूसरे चरण के स्वामी हैं।
 
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