एतद् धारयमाणस्तु यं यं पश्यति चक्षुषा ।
पदा वा संस्पृशेत् सद्य: साध्वसात् स विमुच्यते ॥ ३६ ॥
शब्दार्थ
एतत्—यह; धारयमाण:—धारण करने वाला व्यक्ति; तु—लेकिन; यम् यम्—जिस किसी को; पश्यति—देखता है; चक्षुषा—अपनी आँखों से; पदा—अपने पैरों से; वा—अथवा; संस्पृशेत्—छूता है; सद्य:—तुरन्त; साध्वसात्—समस्त भय से; स:—वह; विमुच्यते—मुक्त हो जाता है ।.
अनुवाद
यदि कोई इस कवच को धारण करता है, तो वह जिस किसी को अपने नेत्रों से देखता है, अथवा पैरों से छू देता है, वह तुरन्त ही उपर्युक्त समस्त संकटों से विमुक्त हो जाता है।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥