ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति। भ्रामयन् सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया ॥ “हे अर्जुन! परमेश्वर सबों के हृदय में स्थित है और वह भौतिक शक्ति से निर्मित यंत्र पर आसीन समस्त जीवों के चक्कर लगाने का निर्देशन कर रहा है।” भौतिक शरीर का निर्माण बहिरंगा शक्ति द्वारा भगवान् के निर्देशानुसार किया जाता है। बद्धजीव इस यंत्र में आरूढ़ होकर पूरे ब्रह्माण्ड में विचरण करता है और देहात्म-बुद्धि के कारण कष्ट ही कष्ट भोगता रहता है। वस्तुत: निन्दा का कष्ट और प्रशंसा का हर्ष, सत्कार की स्वीकृति या कठोर शब्दों द्वारा अपमान—ये सभी जीवन की भौतिक धारणा से ही अनुभव किये जाते हैं। किन्तु चूँकि भगवान् भौतिक नहीं, अपितु सच्चिदानन्द विग्रह हैं, अतएव वे अपमान या सम्मान, निन्दा या स्तुति से अप्रभावित रहते हैं। सदा अप्रभावित रहने तथा पूर्ण होने के कारण वे भक्तों द्वारा सुन्दर प्रार्थनाएँ किये जाने पर अधिक हर्षित नहीं होते, यद्यपि भक्त को भगवान् की प्रार्थना करने से लाभ होता है। निस्सन्देह वे अपने तथाकथित शत्रु के प्रति अत्यन्त दयालु रहते हैं, क्योंकि जो भगवान् को सतत अपना शत्रु मानता है उसे भी लाभ होता है यद्यपि वह भगवान् के प्रतिकूल सोचता रहता है। बद्धजीव, शत्रु या मित्र, चाहे किसी रूप में भगवान् पर अनुरक्त हो जाता है और लाभ ही प्राप्त करता है। |