हे राजा युधिष्ठिर, गोपियाँ अपनी विषयवासना से, कंस भय से, शिशुपाल तथा अन्य राजा ईर्ष्या से, यदुगण कृष्ण के साथ पारिवारिक सम्बन्ध से, तुम सब पाण्डव कृष्ण के प्रति अपार स्नेह से तथा हम सारे सामान्य भक्त अपनी भक्ति से कृष्ण की कृपा को प्राप्त कर सके हैं।
तात्पर्य
विभिन्न प्रकार के लोग अपनी निजी प्रबल इच्छाओं के अनुसार जिसे भाव कहते हैं विभिन्न प्रकार की मुक्ति प्राप्त करते हैं यथा सायुज्य, सालोक्य, सारूप्य, सामीप्य तथा सार्ष्टि। इस प्रकार यहाँ इसका वर्णन किया गया है कि गोपियाँ अपनी काम-वासनाओं के द्वारा भगवान् की सर्वाधिक प्रिय भक्तिनें बन सकीं, क्योंकि उनकी वासनाएँ कृष्ण के प्रति प्रगाढ़ प्रेम पर आश्रित थीं। यद्यपि गोपियों ने वृन्दावन में प्रेमिकओं के रूप में (परकीया रस ) अपनी काम-वासनाओं को प्रकट किया था किन्तु वास्तव में वे काम-वासनाएँ न थीं। आध्यात्मिक प्रगति के लिए यह महत्त्वपूर्ण है। यद्यपि उनकी इच्छाएँ वासनायुक्त प्रतीत होती थीं, लेकिन वे भौतिक जगत की काम-वासनाएँ न थीं। चैतन्य- चरितामृत में आध्यात्मिक तथा भौतिक जगत की इच्छाओं की तुलना सोने तथा लोहे से की गई है। सोना तथा लोहा दोनों ही धातुएँ हैं, लेकिन उनके मूल्य में महान् अन्तर है। कृष्ण के प्रति गोपियों की काममय इच्छाओं की तुलना सोने से की गई है और भौतिक विषय-वासनाओं की तुलना लोहे से की गई है।
कंस तथा कृष्ण के अन्य शत्रू ब्रह्म में विलीन हो गये, लेकिन कृष्ण के मित्रों तथा भक्तों को भी वही पद क्यों प्राप्त हो? कृष्ण के भक्त भगवान् के नित्य संगी के रूप में उनका सान्निध्य या तो वृन्दावन में या वैकुण्ठ लोक में प्राप्त करते हैं। इसी प्रकार यद्यपि नारद मुनि तीनों लोकों में विचरण करते हैं, किन्तु वे नारायण की उत्तम भक्ति करते हैं (ऐश्वर्यमान् )। सारे वृन्दावन में वृष्णियों तथा यदुवों एवं कृष्ण के माता-पिता का कृष्ण से पारिवारिक सम्बन्ध है, लेकिन वृन्दावन में कृष्ण के पोष्य पिता तथा माता वसुदेव तथा देवकी से अधिक श्रेष्ठ हैं।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥