द्वा:स्थावित्यनेनाधिकार-स्थत्वमुक्तम्- अधिकारस्थिताश्चैव विमुक्तश्च द्विधा जना:। विष्णुलोकस्थितास्तेषां वरशापादियोगिन: ॥ अधिकारस्थितां मुक्तिं नियतं प्राप्नुवन्ति च। विमुक्त्यनन्तरं तेषां वर शापादयो ननु ॥ देहेन्द्रियासुयुक्तश्च पूर्वं पश्चान्न तैर्युता:। अप्यभिमानिभिस्तेषां देवै स्वात्मोत्तमैर्युता: ॥ सारांश यह है कि वैकुण्ठलोक में भगवान् विष्णु के निजी पार्षद सदैव मुक्तात्माएँ हैं। यदि कभी उन्हें वर प्राप्त होता है या शाप दिया जाता है, तो भी वे सदैव मुक्त रहते हैं और वे प्रकृति के भौतिक गुणों से कभी कलुषित नहीं होते। वैकुण्ठलोक में मुक्ति के पूर्व उन्हें भौतिक शरीर प्राप्त थे, किन्तु एक बार वैकुण्ठलोक आ जाने पर उनके वे शरीर नहीं रहे। अतएव भगवान् विष्णु के पार्षदों को यदि कभी शापवश अवतरित होना पड़ता है, तो भी वे सदैव मुक्त रहते हैं। |