एवम्—इस प्रकार; शप्तौ—शापित होकर; स्व-भवनात्—अपने निवास वैकुण्ठ से; पतन्तौ—गिरते हुए; तौ—वे दोनों (जय तथा विजय); कृपालुभि:—दयालु मुनियों (सनन्दन आदि) द्वारा.); प्रोक्तौ—सम्बोधित किये; पुन:—फिर; जन्मभि:—जन्मों से; वाम्—तुम्हारे; त्रिभि:—तीन; लोकाय—पद के लिए; कल्पताम्—सम्भव हो ।.
अनुवाद
मुनियों द्वारा इस प्रकार शापित होकर जब जय तथा विजय भौतिक जगत में गिर रहे थे तो उन मुनियों ने उन पर दया करके इस प्रकार सम्बोधित किया, “हे द्वारपालो, तुम तीन जन्मों के बाद वैकुण्ठलोक में अपने-अपने पदों पर लौट सकोगे, क्योंकि तब श्राप की अवधि समाप्त हो चुकी होगी।”
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥