शमो दमस्तप: शौचं सन्तोष: क्षान्तिरार्जवम् ।
ज्ञानं दयाच्युतात्मत्वं सत्यं च ब्रह्मलक्षणम् ॥ २१ ॥
शब्दार्थ
शम:—मन का संयम; दम:—इन्द्रिय संयम; तप:—तपस्या; शौचम्—पवित्रता; सन्तोष:—तुष्टि; क्षान्ति:—क्षमाशीलता (क्रोध से विक्षुब्ध न होना); आर्जवम्—सरलता; ज्ञानम्—ज्ञान; दया—दया; अच्युत-आत्मत्वम्—अपने को ईश्वर का नित्य दास मानना; सत्यम्—सत्य; च—भी; ब्रह्म-लक्षणम्—ब्राह्मण के लक्षण ।.
अनुवाद
ब्राह्मण के लक्षण इस प्रकार हैं—मन का संयम, इन्द्रिय संयम, तपस्या, पवित्रता, सन्तोष, क्षमाशीलता, सरलता, ज्ञान, दया, सत्य तथा भगवान् के प्रति पूर्ण आत्म-समर्पण।
तात्पर्य
वर्णाश्रम-धर्म व्यवस्था में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास के लक्षणों का वर्णन हुआ है। अन्तिम लक्ष्य तो अच्युतात्मत्वम्—सदैव
भगवान् कृष्ण या विष्णु के विषय सोचना है। कृष्णभावनामृत में उन्नति करने के लिए मनुष्य को उपर्युक्त गुणों से युक्त ब्राह्मण बनना होता है।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥