वृत्त्या—वृत्ति से; स्व-भाव-कृतया—अपने भौतिक गुणों के अनुसार किया गया; वर्तमान:—विद्यमान; स्व-कर्म-कृत्— अपना-अपना कार्य करते हुए; हित्वा—त्याग कर; स्व-भाव-जम्—अपने ही गुणों से उत्पन्न; कर्म—कार्य; शनै:—धीरे-धीरे; निर्गुणताम्—दिव्य स्थिति; इयात्—प्राप्त कर सकता है ।.
अनुवाद
यदि कोई अपनी प्रकृति जन्य भौतिक स्थिति के अनुसार अपना वृत्तिपरक कार्य करता है तथा धीरे-धीरे इन कार्यों को छोड़ देता है, तो उसे निष्काम अवस्था प्राप्त हो जाती है।
तात्पर्य
यदि कोई अपने कुल के रिवाजों तथा कर्तव्यों को धीरे-धीरे छोडक़र अपनी स्वाभाविक स्थिति में भगवान् की सेवा करने का प्रयास करता है, तो वह अपने कर्मों से क्रमश: मुक्त हो जाता है और निष्काम अवस्था अर्थात् भौतिक इच्छाओं से मुक्ति प्राप्त कर लेता है।
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