अकाम: सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधी:। तीव्रेण भक्तियोगेन यजेत पुरुषं परम् ॥ “जिस व्यक्ति में व्यापक बुद्धि है, वह चाहे भौतिक इच्छाओं से पूर्ण हो, या किसी भी इच्छा से रहित हो या मुक्ति की कामना करता हो, उसे हर तरह से परम पुरुष भगवान् की पूजा करनी चाहिए।” (भागवत २.३.१०) अन्याभिलाषिताशून्यं ज्ञानकर्माद्यनावृतम्। आनुकूल्येन कृष्णानुशीलनं भक्तिरुत्तमा ॥ “मनुष्य को चाहिए कि अनुकूल होकर तथा सकाम कर्म या दार्शनिक चिन्तन द्वारा किसी प्रकार के भौतिक लाभ की इच्छा से रहित होकर भगवान् कृष्ण की दिव्य प्रेमाभक्ति करे।” (भक्तिरसामृत सिन्धु १.१.११) |