न मां दुष्कुतिनो मूढा: प्रपद्यन्ते नराधमा:। माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिता: ॥ “जो शैतान नितान्त मूर्ख हैं, जो मनुष्यों में अधम हैं, जिनकी बुद्धि मोह द्वारा नष्ट हो चुकी है और जो असुर भाव में हिस्सा बँटाते हैं, वे मेरी शरण में नहीं आते” (भगवद्गीता ७.१५)। असुरभाव हिरण्यकशिपु का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसे लोग मूढ तथा नराधम होने के कारण कभी भी विष्णु को ब्रह्म रूप में स्वीकार नहीं करते और न उनकी शरण ग्रहण करते हैं। स्वाभाविक था कि हिरण्यकशिपु अपने पुत्र प्रह्लाद पर अत्यधिक क्रुद्ध होता, क्योंकि वह शत्रुपक्ष द्वारा प्रभावित हो रहा था। अतएव उसने आदेश दिया था कि उसके पुत्र के निवास स्थान में नारद जैसे साधु पुरुषों को प्रविष्ट न होने दिया जाये, अन्यथा वैष्णव उपदेशों से प्रह्लाद अधिक बिगड़ जाएगा। |