गृहम्—अध्यापकों (षण्ड तथा अमर्क) के घर तक; आनीतम्—लाया गया; आहूय—पुकार कर; प्रह्रादम्—प्रह्लाद को; दैत्य याजका:—हिरण्यकशिपु के पुरोहित; प्रशस्य—शान्त करके; श्लक्ष्णया—अत्यन्त नम्रतापूर्वक; वाचा—वाणी; समपृच्छन्त— प्रश्न पूछा; सामभि:—अत्यन्त अनुकूल शब्दों से ।.
अनुवाद
जब हिरण्यकशिपु के नौकर बालक प्रह्लाद को गुरुकुल वापस ले आये तो असुरों के पुरोहित षण्ड तथा अमर्क ने उसे शान्त किया। उन्होंने अत्यन्त मृदु वाणी तथा स्नेह भरे शब्दों से उससे इस प्रकार पूछा।
तात्पर्य
षण्ड तथा अमर्क असुरों के पुरोहित थे। वे प्रह्लाद महाराज से यह जानने के लिए उत्सुक थे कि वे कौन से वैष्णव हैं, जो उसे कृष्णभावनामृत का उपदेश देने आते हैं। उसका मन्तव्य उन वैष्णवों के नामों का
पता लगाना था। प्रारम्भ में उन्होंने बालक को डराया-धमकाया नहीं, क्योंकि ऐसा करने पर हो सकता था कि वह असली दोषियों के नाम न बताता। अतएव उन्होंने अत्यन्त मृदु तथा शान्त भाव से इस प्रकार पूछा।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥