हे पुत्र प्रह्लाद, तुम्हारा क्षेम तथा कल्याण हो। तुम झूठ मत बोलना। ये बालक जिन्हें तुम देख रहे हो, वे तुम जैसे नहीं हैं, क्योंकि ये सब पथभ्रष्ट जैसे नहीं बोलते। तुमने ये उपदेश कहाँ से सीखे? तुम्हारी बुद्धि इस तरह कैसे बिगड़ गई है?
तात्पर्य
प्रह्लाद महाराज अभी बालक ही थे, अतएव उनके अध्यापकों ने सोचा कि यदि इस बालक को फुसला सकें तो वह तुरन्त सच बता देगा और यह रहस्य प्रकट कर देगा कि किस प्रकार वैष्णवजन आकर उसे भक्ति का पाठ पढ़ा जाते हैं। निस्सन्देह, यह विस्मयजनक था कि उसी पाठशाला
के अन्य दैत्य बालक बिगड़े नहीं थे, केवल प्रह्लाद महाराज ही वैष्णवों के उपदेश से बिगड़े थे। अध्यापकों का मुख्य कर्तव्य था कि वे पता लगाएँ कि वे वैष्णव कौन थे, जो वहाँ आकर प्रह्राद को शिक्षा देते थे और उसकी बुद्धि को बिगाड़ रहे थे।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥