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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 7: प्रह्लाद ने गर्भ में क्या सीखा  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  7.7.8 
प्राह नैनां सुरपते नेतुमर्हस्यनागसम् ।
मुञ्च मुञ्च महाभाग सतीं परपरिग्रहम् ॥ ८ ॥
 
शब्दार्थ
प्राह—कहा; —नहीं; एनाम्—इसको; सुर-पते—हे देवताओं के राजा; नेतुम्—घसीटने के लिए; अर्हसि—तुम्हें चाहिए; अनागसम्—पापरहित, निर्दोष; मुञ्च मुञ्च—छोड़ दो, छोड़ दो; महा-भाग—हे परम भाग्यशाली; सतीम्—सती; पर-परिग्रहम्— पराये पुरुष की पत्नी को ।.
 
अनुवाद
 
 नारद मुनि ने कहा : हे देवराज इन्द्र, यह स्त्री निश्चय ही पापरहित है। तुम्हें इसे इस तरह क्रूरतापूर्वक घसीटना नहीं चाहिए। हे परम सौभाग्यशाली, यह सती स्त्री किसी दूसरे की पत्नी है। तुम इसे तुरन्त छोड़ दो।
 
 
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