कृष्ण—सूर्य-सम, माया हय अन्धकार। याहाँ कृष्ण, ताहाँ नाहि मायार अधिकार ॥ “भगवान् प्रकाश हैं और अविद्या अंधकार है। जहाँ भगवान् रहते हैं वहाँ अविद्या नहीं रहती।” यह भौतिक जगत तमोगुण से और आध्यात्मिक जीवन के अज्ञान से पूर्ण है, किन्तु भक्तियोग से यह अज्ञान जाता रहता है। भगवान् का प्राकट्य इसलिए हुआ, क्योंकि प्रह्लाद महाराज ने भक्तियोग प्रदर्शित किया और ज्योंही भगवान् प्रकट हुए त्योंही हिरण्यकशिपु के रजो तथा तमोंगुण का प्रभाव जाता रहा, क्योंकि भगवान् का शुद्ध सतोगुण या ब्रह्मतेज प्रधान हो गया। उस प्रखर तेज के समक्ष हिरण्यकशिपु अदृश्य हो गया, अर्थात् उसका प्रभाव नगण्य हो गया। शास्त्र में यह बताने के लिए कि भौतिक जगत का अंधकार किस प्रकार भाग जाता है उदाहरण प्राप्त है। जब ब्रह्मा गर्भोदकशायी विष्णु के उदर से निकले—कमल से उत्पन्न हुए तो उन्होंने देखा कि सब कुछ अंधकारमय है, किन्तु जब उन्हें भगवान् से ज्ञान प्राप्त हो गया तो सब कुछ स्पष्ट हो गया जिस तरह रात्रि से सूर्य प्रकाश में आने पर प्रत्येक वस्तु स्पष्ट दिखने लगती है। मुख्य बात तो यह है कि जब तक हम प्रकृति के गुणों में रहते हैं तब तक हम सदैव अंधकार में होते हैं। यह अंधकार भगवान् की उपस्थिति के बिना दूर नहीं हो पाता जिस का आवाहन भक्तियोग विधि से किया जाता है। भक्तियोग से कल्मषविहीन दिव्य स्थिति उत्पन्न होती है। |