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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 10: देवताओं तथा असुरों के बीच युद्ध  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  8.10.2 
साधयित्वामृतं राजन्पाययित्वा स्वकान्सुरान् ।
पश्यतां सर्वभूतानां ययौ गरुडवाहन: ॥ २ ॥
 
शब्दार्थ
साधयित्वा—सम्पन्न करके; अमृतम्—अमृत की उत्पत्ति; राजन्—हे राजा; पाययित्वा—तथा पिलाकर; स्वकान्—अपने भक्तों; सुरान्—देवताओं को; पश्यताम्—उपस्थिति में; सर्व-भूतानाम्—सारे जीवों की; ययौ—चले गये; गरुड-वाहन:—गरुड़ द्वारा ले जाये जाने वाले भगवान् ।.
 
अनुवाद
 
 हे राजा! समुद्र-मन्थन का कार्य पूरा कर लेने तथा अपने प्रिय भक्त देवताओं को अमृत पिला लेने के बाद भगवान् ने उन सबके देखते-देखते वहाँ से विदा ली और गरुड़ पर चढक़र अपने धाम चले गये।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥