दृष्ट्वा—देखकर; मृधे—युद्धस्थल में; गरुड-वाहम्—गरुड़ द्वारा ले जाए गए भगवान्; इभारि-वाह:—महान् सिंह द्वारा ले गया असुर; आविध्य—घुमा कर; शूलम्—त्रिशूल को; अहिनोत्—उस पर छोड़ा; अथ—इस प्रकार; कालनेमि:—कालनेमि असुर ने; तत्—भगवान् पर असुर द्वारा ऐसा प्रहार; लीलया—आसानी से; गरुड-मूर्ध्नि—गरुड़ के सिर पर; पतत्—गिरते हुए; गृहीत्वा—तुरन्त सहज रूप से पकड़ कर; तेन—उसी हथियार से; अहनत्—मार डाला; नृप—हे राजा; स-वाहम्—अपने वाहन समेत; अरिम्—शत्रु को; त्रि-अधीश:—तीनों लोकों के स्वामी भगवान् ने ।.
अनुवाद
हे राजा! जब सिंह पर आरूढ़ कालनेमि दैत्य ने देखा कि गरुड़वाहन भगवान् युद्धक्षेत्र में हैं, तो उसने तुरन्त अपना त्रिशूल निकाल लिया और उसे गरुड़ के सिर पर चलाया। किन्तु तीनों लोकों के स्वामी भगवान् हरि ने तुरन्त ही उस त्रिशूल को पकड़ लिया और उसी हथियार से अपने शत्रु कालनेमि को उसके वाहन सिंह समेत मार डाला।
तात्पर्य
इस प्रसंग में श्रील मध्वाचार्य कहते हैं—
कालनेम्यादय: सर्वे करिणा निहता अपि।
शुक्रेणोज्जीविता: सन्त: पुनस्तेनैव पातिता: ॥
“कालनेमि तथा अन्य सारे असुर भगवान् हरि द्वारा मार डाले गये और जब असुरों को उनके गुरु शुक्राचार्य ने पुन: जीवित कर दिया तो भगवान् ने उन्हें पुन: मार डाला।”
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥