प्राहरत्—मारा जाकर; कुलिशम्—वज्र दण्ड; तस्मै—उसको (बलि महाराज को); अमोघम्—अच्युत; पर-मर्दन:—शत्रु को हराने में पटु, इन्द्र; स-यान:—अपने वायुयान सहित; न्यपतत्—गिर पड़ा; भूमौ—पृथ्वी पर; छिन्न-पक्ष:—जिसके पंख काट लिये गये हों; इव—सदृश; अचल:—पर्वत ।.
अनुवाद
जब शत्रुओं को हराने वाले इन्द्र ने अपना अमोघ वज्र बलि महाराज पर उन्हें मारने की इच्छा से चलाया तो सचमुच बलि महाराज अपने वायुयान समेत भूमि पर गिर पड़े मानो कोई पर्वत पंख काटे जाने से गिरा हो।
तात्पर्य
वैदिक वाङ्मय के अनेक वर्णनों में पाया जाता है कि पर्वत भी अपने पंखों से आकाश में उड़ते हैं। जब ऐसे
पर्वत मृत हो जाते हैं, तो वे जमीन पर गिर जाते हैं जहाँ वे विशाल मृत शरीरों के रूप में रहते हैं।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥