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श्लोक |
तस्मादिन्द्रोऽबिभेच्छत्रोर्वज्र: प्रतिहतो यत: ।
किमिदं दैवयोगेन भूतं लोकविमोहनम् ॥ ३३ ॥ |
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शब्दार्थ |
तस्मात्—अतएव; इन्द्र:—स्वर्ग के राजा; अबिभेत्—बहुत डर गया; शत्रो:—शत्रु (नमुचि) से; वज्र:—वज्र; प्रतिहत:— मारकर लौटने में असमर्थ था; यत:—क्योंकि; किम् इदम्—यह क्या है; दैव-योगेन—दैवी शक्तिसे; भूतम्—हो गया है; लोक- विमोहनम्—सामान्य लोगों के लिए इतना आश्चर्यजनक ।. |
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अनुवाद |
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जब इन्द्र ने वज्र को शत्रु से वापस आते देखा तो वह अत्यन्त भयभीत हो गया। वह आश्चर्य करने लगा कि कहीं किसी ऊँची दैवी शक्ति से तो यह सब कुछ नहीं हुआ। |
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तात्पर्य |
इन्द्र का वज्र अमोघ है; अतएव जब उसने देखा कि वह नमुचि को हानि पहुँचाये |
बिना लौट आया है, तो वह निश्चित रूप से अत्यधिक भयभीत हो उठा। |
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