नट-वत्—धूर्त या ठग की तरह; मूढ—रे धूर्त; मायाभि:—माया करके; माया-ईशान्—माया को वश में करने वाले देवताओं को; न:—हम सब को; जिगीषसि—विजयी बनना चाहते हो; जित्वा—जीतकर; बालान्—बच्चों को; निबद्ध-अक्षान्—आँखें बाँध कर; नट:—ठग; हरति—ले जाता है; तत्-धनम्—बच्चे का धन ।.
अनुवाद
इन्द्र ने कहा : रे धूर्त! जिस प्रकार ठग बच्चे की आँखों को बाँध कर कभी-कभी उसका धन ले जाता है उसी प्रकार तुम यह जानते हुए कि हम सब ऐसी माया-शक्तियों के स्वामी हैं, अपनी कोई मायाशक्ति दिखलाकर हमें परास्त करना चाहते हो।
____________________________
All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥