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श्लोक |
अन्येऽप्येवं प्रतिद्वन्द्वान्वाय्वग्निवरुणादय: ।
सूदयामासुरसुरान् मृगान्केसरिणो यथा ॥ ४२ ॥ |
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शब्दार्थ |
अन्ये—अन्यों ने; अपि—भी; एवम्—इस प्रकार; प्रतिद्वन्द्वान्—विपक्षियों को; वायु—वायुदेव; अग्नि—अग्निदेव; वरुण- आदय:—वरुण देव तथा अन्य; सूदयाम् आसु:—तेजी से मारने लगे; असुरान्—सारे असुरों को; मृगान्—हिरनों को; केसरिण:—सिंह; यथा—जिस तरह ।. |
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अनुवाद |
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वायु, अग्नि, वरुण इत्यादि देवता अपने विरोधी असुरों को उसी तरह मारने लगे जिस तरह जंगल में हिरनों को सिंह मारते हैं। |
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