येन सम्मोहिता दैत्या: पायिताश्चामृतं सुरा: ।
तद् दिदृक्षव आयाता: परं कौतूहलं हि न: ॥ १३ ॥
शब्दार्थ
येन—ऐसे अवतार से; सम्मोहिता:—मोहित हो गये थे; दैत्या:—असुरगण; पायिता:—पिलाया गया था; च—भी; अमृतम्— अमृत; सुरा:—देवतागण; तत्—वह रूप; दिदृक्षव:—देखने की इच्छा से; आयाता:—हम आये हैं; परम्—अत्यधिक; कौतूहलम्—अत्यन्त उत्सुकता; हि—निस्सन्देह; न:—हमारी ।.
अनुवाद
हे भगवान्! हम लोग यहाँ पर आपके उस रूप का दर्शन करने आये हैं जिसे आपने असुरों को पूर्णतया मोहित करने के लिए दिखलाया था और इस प्रकार देवताओं को अमृत पान करने दिया था। मैं उस रूप को देखने के लिए अत्यन्त उत्सुक हूँ।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥