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श्लोक |
हविष्मान्सुकृत: सत्यो जयो मूर्तिस्तदा द्विजा: ।
सुवासनविरुद्धाद्या देवा: शम्भु: सुरेश्वर: ॥ २२ ॥ |
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शब्दार्थ |
हविष्मान्—हविष्मान; सुकृत:—सुकृत; सत्य:—सत्य; जय:—जय; मूर्ति:—मूर्ति; तदा—उस समय; द्विजा:—सप्तर्षि; सुवासन—सुवासन-गण; विरुद्ध—विरुद्ध-गण; आद्या:—इत्यादि; देवा:—देवता; शम्भु:—शम्भु; सुर-ईश्वर:—देवताओं का राजा इन्द्र ।. |
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अनुवाद |
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हविष्मान, सुकृत, सत्य, जय, मूर्ति इत्यादि सप्तर्षि होंगे; सुवासन-गण तथा विरुद्धगण देवता होंगे और शम्भु उन सबका राजा इन्द्र होगा। |
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