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श्लोक |
विहङ्गमा: कामगमा निर्वाणरुचय: सुरा: ।
इन्द्रश्च वैधृतस्तेषामृषयश्चारुणादय: ॥ २५ ॥ |
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शब्दार्थ |
विहङ्गमा:—विहङ्गमगण; कामगमा:—कामगम-गण; निर्वाणरुचय:—निर्वाणरुचिगण; सुरा:—देवता; इन्द्र:—इन्द्र; च—भी; वैधृत:—वैधृत; तेषाम्—उनमें से; ऋषय:—सप्तर्षि; च—भी; अरुण-आदय:—अरुण इत्यादि ।. |
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अनुवाद |
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विहंगम, कामगम, निर्वाणरुचि इत्यादि देवता होंगे। वैधृत देवताओं का राजा इन्द्र होगा और अरुण इत्यादि सप्तर्षि होंगे। |
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