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श्लोक |
पवित्राश्चाक्षुषा देवा: शुचिरिन्द्रो भविष्यति ।
अग्निर्बाहु: शुचि: शुद्धो मागधाद्यास्तपस्विन: ॥ ३४ ॥ |
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शब्दार्थ |
पवित्रा:—पवित्रगण; चाक्षुषा:—चाक्षुषगण; देवा:—देवता; शुचि:—शुचि; इन्द्र:—स्वर्ग का राजा; भविष्यति—होगा; अग्नि:—अग्नि; बाहु:—बाहु; शुचि:—शुचि; शुद्ध:—शुद्ध; मागध—मागध; आद्या:—इत्यादि; तपस्विन:—तपस्वी मुनि ।. |
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अनुवाद |
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पवित्रगण तथा चाक्षुषगण इत्यादि देवता होंगे और शुचि इन्द्र होगा। अग्नि, बाहु, शुचि, शुद्ध, मागध तथा अन्य तपस्वी सप्तर्षि होंगे। |
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