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श्लोक |
मघवांस्तमभिप्रेत्य बले: परममुद्यमम् ।
सर्वदेवगणोपेतो गुरुमेतदुवाच ह ॥ २४ ॥ |
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शब्दार्थ |
मघवान्—इन्द्र; तम्—स्थिति को; अभिप्रेत्य—समझकर; बले:—बलि महाराज के; परमम् उद्यमम्—महान् उत्साह; सर्व-देव- गण—सभी देवताओं द्वारा; उपेत:—साथ-साथ; गुरुम्—गुरु को; एतत्—निम्नलिखित शब्द; उवाच—कहा; ह—निस्सन्देह ।. |
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अनुवाद |
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बलि महाराज के अथक प्रयास को देखकर तथा उसके मन्तव्य को समझकर राजा इन्द्र अन्य देवताओं के साथ अपने गुरु बृहस्पति के पास गये और इस प्रकार बोले। |
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