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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 16: पयोव्रत पूजा विधि का पालन करना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  8.16.10 
अपि सर्वे कुशलिनस्तव पुत्रा मनस्विनि ।
लक्षयेऽस्वस्थमात्मानं भवत्या लक्षणैरहम् ॥ १० ॥
 
शब्दार्थ
अपि—चाहे तो; सर्वे—सभी; कुशलिन:—पूर्ण कुशलता के साथ; तव—तुम्हारे; पुत्रा:—सारे पुत्र; मनस्विनि—हे विशाल हृदय वाली नारी; लक्षये—देखता हूँ; अस्वस्थम्—अशान्त; आत्मानम्—मन को; भवत्या:—तुम्हारे; लक्षणै:—लक्षणों से; अहम्—मैं ।.
 
अनुवाद
 
 हे मनस्विनि! तुम्हारे सारे पुत्र कुशलपूर्वक तो हैं? तुम्हारे म्लान मुख को देखकर मुझे लगता है कि तुम्हारा मन शान्त नहीं है। ऐसा क्यों है?
 
 
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