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श्लोक 8.16.10  |
अपि सर्वे कुशलिनस्तव पुत्रा मनस्विनि ।
लक्षयेऽस्वस्थमात्मानं भवत्या लक्षणैरहम् ॥ १० ॥ |
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शब्दार्थ |
अपि—चाहे तो; सर्वे—सभी; कुशलिन:—पूर्ण कुशलता के साथ; तव—तुम्हारे; पुत्रा:—सारे पुत्र; मनस्विनि—हे विशाल हृदय वाली नारी; लक्षये—देखता हूँ; अस्वस्थम्—अशान्त; आत्मानम्—मन को; भवत्या:—तुम्हारे; लक्षणै:—लक्षणों से; अहम्—मैं ।. |
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अनुवाद |
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हे मनस्विनि! तुम्हारे सारे पुत्र कुशलपूर्वक तो हैं? तुम्हारे म्लान मुख को देखकर मुझे लगता है कि तुम्हारा मन शान्त नहीं है। ऐसा क्यों है? |
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