अदिति ने कहा : हे मेरे पूज्य ब्राह्मण पति! सारे ब्राह्मण, गाएँ, धर्म तथा अन्य लोग कुशलपूर्वक हैं। हे मेरे घर के स्वामी! धर्म, अर्थ तथा काम—ये तीनों गृहस्थ जीवन में ही फलते फूलते हैं जिसके फलस्वरूप यह जीवन सौभाग्य से पूर्ण होता है।
तात्पर्य
गृहस्थ जीवन में मनुष्य धर्म, अर्थ एवं काम के तीन सिद्धान्तों को शास्त्रों के नियमों के अनुसार विकसित कर सकता है किन्तु मोक्ष-प्राप्ति के लिए मनुष्य को गृहस्थ जीवन का त्याग करके आध्यात्मिक संन्यास ग्रहण करना चाहिए। कश्यपमुनि संन्यासी नहीं थे; अतएव उन्हें यहाँ एक बार ब्राह्मण तथा दूसरी बार गृहमेधिन सम्बोधित किया गया है। उनकी पत्नी अदिति ने उन्हें विश्वास दिलाया कि जहाँ तक गृहस्थ-जीवन का सम्बन्ध था, हर बात सु-चारु ढंग से हो रही थी और ब्राह्मणों तथा गायों को सम्मान तथा संरक्षण प्रदान किया जा रहा था। दूसरे शब्दों में, किसी प्रकार की परेशानी नहीं थी; गृहस्थ-जीवन ठीक तरह से उन्नति के पथ पर अग्रसर हो रहा था।
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