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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 16: पयोव्रत पूजा विधि का पालन करना  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  8.16.12 
अग्नयोऽतिथयो भृत्या भिक्षवो ये च लिप्सव: ।
सर्वं भगवतो ब्रह्मन्ननुध्यानान्न रिष्यति ॥ १२ ॥
 
शब्दार्थ
अग्नय:—अग्नि की पूजा; अतिथय:—अतिथियों का स्वागत; भृत्या:—सेवकों को तुष्ट करना; भिक्षव:—भिखारियों को प्रसन्न रखना; ये—जो; —तथा; लिप्सव:—वे जैसा चाहते हैं (वैसा ही उनका ध्यान रखा जाता है); सर्वम्—सारे के सारे; भगवत:—मेरे स्वामी आपका; ब्रह्मन्—हे ब्राह्मण; अनुध्यानात्—निरन्तर ध्यान करने से; न रिष्यति—कुछ नहीं रह जाता (सब कुछ ठीक से हो जाता है) ।.
 
अनुवाद
 
 हे प्रिय पति! मैं अग्नि, अतिथि, सेवक तथा भिखारी इन सब की समुचित देखभाल करती रही हूँ। चूँकि मैं सदैव आपका चिन्तन करती रही हूँ अतएव धर्म में किसी प्रकार की उपेक्षा की सम्भावना नहीं रही।
 
 
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