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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 16: पयोव्रत पूजा विधि का पालन करना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  8.16.15 
तस्मादीश भजन्त्या मे श्रेयश्चिन्तय सुव्रत ।
हृतश्रियो हृतस्थानान्सपत्नै: पाहि न: प्रभो ॥ १५ ॥
 
शब्दार्थ
तस्मात्—अतएव; ईश—हे परमशक्तिशाली नियन्ता; भजन्त्या:—अपने सेवक का; मे—मेरा; श्रेय:—कल्याण; चिन्तय—जरा विचार करें; सु-व्रत—हे भद्र; हृत-श्रिय:—ऐश्वर्यविहीन; हृत-स्थानान्—घर-बार से रहित; सपत्नै:—प्रतिद्वन्द्वियों द्वारा; पाहि— रक्षा कीजिये; न:—हम सबकी; प्रभो—हे स्वामी ।.
 
अनुवाद
 
 अतएव हे भद्र स्वामी! अपनी दासी पर कृपा कीजिये। हमारे प्रतिद्वन्द्वी असुरों ने अब हमें ऐश्वर्य तथा घर-बार से विहीन कर दिया है। कृपा करके हमें संरक्षण प्रदान कीजिये।
 
तात्पर्य
 देवताओं की माता अदिति ने कश्यपमुनि से अनुरोध किया कि वे देवताओं को संरक्षण प्रदान करें। जब हम देवताओं का नाम लेते हैं, तो उसमें उनकी माता भी सम्मिलित रहती हैं।
 
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  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥