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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 16: पयोव्रत पूजा विधि का पालन करना  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  8.16.16 
परैर्विवासिता साहं मग्ना व्यसनसागरे ।
ऐश्वर्यं श्रीर्यश: स्थानं हृतानि प्रबलैर्मम ॥ १६ ॥
 
शब्दार्थ
परै:—अपने शत्रुओं द्वारा; विवासिता—अपने अपने घरों से निकाली जाकर; सा—वही; अहम्—मैं; मग्ना—डूबी हुई; व्यसन सागरे—कष्ट के समुद्र में; ऐश्वर्यम्—ऐश्वर्य; श्री:—सौन्दर्य; यश:—कीर्ति; स्थानम्—स्थान; हृतानि—छीने गये; प्रबलै:— अत्यन्त शक्तिशाली; मम—मेरा ।.
 
अनुवाद
 
 हमारे अत्यन्त शक्तिशाली शत्रु असुरों ने हमारा ऐश्वर्य, हमारा सौन्दर्य, हमारा यश यहाँ तक कि हमारा घर भी हमसे छीन लिया है। निस्सन्देह, हमें अब वनवास दे दिया गया है और हम विपत्ति के सागर में डूब रहे हैं।
 
 
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