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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 16: पयोव्रत पूजा विधि का पालन करना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  8.16.18 
श्रीशुक उवाच
एवमभ्यर्थितोऽदित्या कस्तामाह स्मयन्निव ।
अहो मायाबलं विष्णो: स्‍नेहबद्धमिदं जगत् ॥ १८ ॥
 
शब्दार्थ
श्री-शुक: उवाच—श्रीशुकदेव गोस्वामी ने कहा; एवम्—इस प्रकार से; अभ्यर्थित:—प्रार्थना किये जाने पर; अदित्या—अदिति द्वारा; क:—कश्यपमुनि ने; ताम्—उससे; आह—कहा; स्मयन्—मुस्काते हुए; इव—के सदृश; अहो—ओह; माया-बलम्— माया का प्रभाव; विष्णो:—विष्णु की; स्नेह-बद्धम्—इस स्नेह से प्रभावित; इदम्—यह; जगत्—सारा संसार ।.
 
अनुवाद
 
 श्रीशुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा : जब अदिति ने कश्यपमुनि से इस प्रकार प्रार्थना की तो वे कुछ मुस्काये और उन्होंने कहा “ओह! भगवान् विष्णु की माया कितनी प्रबल है, जिससे सारा संसार बच्चों के स्नेह से बँधा है।”
 
तात्पर्य
 कश्यपमुनि अपनी पत्नी के कष्ट के प्रति निश्चित रूप से सहानुभूति रखते थे; फिर भी वे चकित थे कि सारा संसार स्नेह से किस प्रकार प्रभावित है।
 
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