भक्तिपूर्वक भगवान् विष्णु की पूजा करने का अर्थ है अर्चना मार्ग का अनुसरण करना। श्रवणं कीर्तनं विष्णो: स्मरणं पादसेवनम्। अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥
मनुष्य को भगवान् विष्णु या कृष्ण के अर्चाविग्रह की स्थापना करके, उन्हें वस्त्राभूषित करके, फूलों की मालाओं से अलंकृत करके, पूजन करना चाहिए और फल, फूल तथा घी-शक्कर और अन्न से तैयार किए गए सभी प्रकार के भोजन अर्पित करने चाहिए। और घंटी बजाते हुए उसकी आरती करनी चाहिए और दीप जलाकर अगुरु इत्यादि समर्पित करना चाहिए। यह भगवान् की पूजा (अर्चना) कहलाती है। यहाँ पर संस्तुति की गई है कि केवल दूध पीकर व्रत रखा जाये। यह पयोव्रत कहलाता है। जिस प्रकार हम लोग सामान्यतया एकादशी को अन्न न खाकर भक्ति करते हैं उसी तरह यह संस्तुति की जाती है कि द्वादशी के दिन दूध के अतिरिक्त और कुछ न खाया पिया जाये। पयोव्रत तथा भगवान् की अर्चन भक्ति शुद्ध भक्ति-भाव (भक्त्या ) से की जानी चाहिए। भक्ति के बिना भगवान् की पूजा नहीं की जा सकती। भक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्त्वत:। यदि कोई भगवान् को जानना चाहता है और भगवान् से सीधे जुडऩा चाहता है, तो वह यह जान कर कि वे क्या खाते हैं और किस तरह प्रसन्न होते हैं भक्तियोग का पालन करे। जैसी यहाँ पर भी संस्तुति की गई है—भक्त्या परमयान्वित:—मनुष्य को शुद्ध भक्ति से परिपूरित होना चाहिए।