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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 16: पयोव्रत पूजा विधि का पालन करना  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  8.16.29 
नमस्तुभ्यं भगवते पुरुषाय महीयसे ।
सर्वभूतनिवासाय वासुदेवाय साक्षिणे ॥ २९ ॥
 
शब्दार्थ
नम: तुभ्यम्—मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ; भगवते—भगवान् को; पुरुषाय—परम पुरुष; महीयसे—सभी पुरुषों में श्रेष्ठ; सर्व-भूत-निवासाय—उस व्यक्ति को जो हर एक के हृदय में वास करता है; वासुदेवाय—भगवान् को जो सर्वत्र निवास करता है; साक्षिणे—सबके साक्षी ।.
 
अनुवाद
 
 हे भगवान्, हे महानतम, हे सब के हृदय में वास करने वाले तथा जिनमें सभी जीव वास करते हैं, हे प्रत्येक वस्तु के साक्षी, हे सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वव्यापी पुरुष वासुदेव! मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ।
 
 
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