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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 16: पयोव्रत पूजा विधि का पालन करना  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  8.16.30 
नमोऽव्यक्ताय सूक्ष्माय प्रधानपुरुषाय च ।
चतुर्विंशद्गुणज्ञाय गुणसङ्ख्यानहेतवे ॥ ३० ॥
 
शब्दार्थ
नम:—मैं आपको नमस्कार करता हूँ; अव्यक्ताय—जो भौतिक आँखों से नहीं देखे जाते; सूक्ष्माय—दिव्य; प्रधान-पुरुषाय— परम पुरुष को; —भी; चतु:-विंशत्—चौबीस; गुण-ज्ञाय— तत्त्वों के ज्ञाता को; गुण-सङ्ख्यान—सांख्ययोग पद्धति का; हेतवे—मूल कारण ।.
 
अनुवाद
 
 हे परम पुरुष! मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ। अत्यन्त सूक्ष्म होने के कारण आप भौतिक आँखों से कभी नहीं दिखते। आप चौबीस तत्त्वों के ज्ञाता हैं और आप सांख्य योगपद्धति के सूत्रपात-कर्ता हैं।
 
तात्पर्य
 चतुर्विंशद् गुण अर्थात् चौबीस तत्त्व इस प्रकार हैं—पाँच स्थूल तत्त्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश), तीन सूक्ष्म तत्त्व (मन, बुद्धि तथा अहंकार), दस इन्द्रियाँ (पाँच कर्मेन्द्रियाँ तथा पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ), पाँच इन्द्रिय-विषय, तथा दूषित चेतना। ये सांख्ययोग के विषय हैं जिसका सूत्रपात भगवान् कपिलदेव द्वारा हुआ। इसी सांख्ययोग की स्थापना पुन: एक अन्य कपिल द्वारा हुई, किन्तु वे नास्तिक थे और उनकी पद्धति प्रामाणिक नहीं मानी जाती।
 
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