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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 16: पयोव्रत पूजा विधि का पालन करना  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  8.16.31 
नमो द्विशीर्ष्णे त्रिपदे चतु:श‍ृङ्गाय तन्तवे ।
सप्तहस्ताय यज्ञाय त्रयीविद्यात्मने नम: ॥ ३१ ॥
 
शब्दार्थ
नम:—मैं आपको नमस्कार करता हूँ; द्वि-शीर्ष्णे—दो सिरों वाले; त्रि-पदे—तीन पाँव वाले; चतु:-शृङ्गाय—चार सींगों वाले; तन्तवे—विस्तार करने वाले; सप्त-हस्ताय—सात हाथों वाले; यज्ञाय—यज्ञ पुरुष को; त्रयी—वैदिक अनुष्ठानों के तीन गुण; विद्या-आत्मने—समस्त ज्ञान के स्वरूप भगवान् को; नम:—नमस्कार करता हूँ ।.
 
अनुवाद
 
 हे भगवान्! मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ जिनके दो सिर (प्रायणीय तथा उदानीय), तीन पाँव (सवन-त्रय), चार सींग (चार वेद) तथा सात हाथ (सप्त छन्द यथा गायत्री) हैं। मैं आपको नमस्कार करता हूँ जिनका हृदय तथा आत्मा तीनों वैदिक काण्डों (कर्मकाण्ड, ज्ञानकाण्ड तथा उपासना काण्ड) हैं तथा जो इन काण्डों को यज्ञ के रूप में विस्तार देते हैं।
 
 
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