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श्लोक 8.16.40  |
शृतं पयसि नैवेद्यं शाल्यन्नं विभवे सति ।
ससर्पि: सगुडं दत्त्वा जुहुयान्मूलविद्यया ॥ ४० ॥ |
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शब्दार्थ |
शृतम्—पकाया गया; पयसि—दूध में; नैवेद्यम्—अर्चाविग्रह को भेंट; शालि-अन्नम्—चावल; विभवे—यदि उपलब्ध हो; सति—इस प्रकार से; स-सर्पि:—घी के साथ; स-गुडम्—गुड़ के साथ; दत्त्वा—उन्हें प्रदान करके; जुहुयात्—अग्नि में आहुतियाँ डाले; मूल-विद्यया—उसी द्वादशाक्षर मंत्र के उच्चारण के साथ-साथ ।. |
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अनुवाद |
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यदि सामर्थ्य हो तो भक्त अर्चाविग्रह पर दूध में घी तथा गुड़ के साथ पकाये चावल चढ़ाए। उसी मूल मंत्र का उच्चारण करते हुए यह सामग्री अग्नि में डाली जाये। |
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