हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 16: पयोव्रत पूजा विधि का पालन करना  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  8.16.41 
निवेदितं तद्भ‍क्ताय दद्याद्भ‍ुञ्जीत वा स्वयम् ।
दत्त्वाचमनमर्चित्वा ताम्बूलं च निवेदयेत् ॥ ४१ ॥
 
शब्दार्थ
निवेदितम्—चढ़ाया हुआ प्रसाद; तत्-भक्ताय—उनके भक्त को; दद्यात्—दिया जाये; भुञ्जीत—खाये; वा—अथवा; स्वयम्— खुद; दत्त्वा आचमनम्—हाथ तथा मुखमार्जन के लिए जल देकर; अर्चित्वा—पूजा करके; ताम्बूलम्—पान; —भी; निवेदयेत्—प्रदान करे ।.
 
अनुवाद
 
 उसे चाहिए कि वह सारा प्रसाद या उसका कुछ अंश किसी वैष्णव को दे और तब कुछ प्रसाद स्वयं ग्रहण करे। तत्पश्चात् अर्चाविग्रह को आचमन कराए और तब पान सुपारी चढ़ाकर फिर से भगवान् की पूजा करे।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥