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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 16: पयोव्रत पूजा विधि का पालन करना  »  श्लोक 44-45
 
 
श्लोक  8.16.44-45 
भुञ्जीत तैरनुज्ञात: सेष्ट: शेषं सभाजितै: ।
ब्रह्मचार्यथ तद्रात्र्यां श्वोभूते प्रथमेऽहनि ॥ ४४ ॥
स्‍नात: शुचिर्यथोक्तेन विधिना सुसमाहित: ।
पयसा स्‍नापयित्वार्चेद् यावद्‌व्रतसमापनम् ॥ ४५ ॥
 
शब्दार्थ
भुञ्जीत—प्रसाद ग्रहण करे; तै:—उन ब्राह्मणों से; अनुज्ञात:—अनुमति लेकर; स-इष्ट:—मित्रों तथा परिवार वालों के सहित; शेषम्—शेष बचा हुआ; सभाजितै:—उचित रूप से सम्मानित; ब्रह्मचारी—ब्रह्मचर्य व्रत का पालन; अथ—निस्सन्देह; तत्-रात्र्याम्—उस रात में; श्व: भूते—सबेरा होने पर; प्रथमे अहनि—पहले दिन; स्नात:—स्नान किया हुआ; शुचि:—पवित्र होकर; यथा-उक्तेन—जैसाकि पहले कहा जा चुका है; विधिना—विधिपूर्वक; सु-समाहित:—एकाग्र होकर; पयसा—दूध से; स्नापयित्वा—अर्चाविग्रह को स्नान कराकर; अर्चेत्—पूजा करे; यावत्—जब तक; व्रत-समापनम्—पूजा की अवधि समाप्त न हो जाये ।.
 
अनुवाद
 
 जिन सम्मान्य ब्राह्मणों को भोजन कराया हो उनका भलीभाँति सत्कार करे और तब उनकी अनुमति से अपने मित्रों तथा सम्बन्धियों सहित स्वयं प्रसाद ग्रहण करे। उस रात में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करे और दूसरे दिन प्रात: स्नान करने के बाद अत्यन्त शुद्धता तथा ध्यान के साथ अर्चाविग्रह को दूध से स्नान कराए और विस्तारपूर्वक पूर्वोक्त विधियों के अनुसार उनकी पूजा करे।
 
 
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