वैदिक प्रथा के अनुसार अग्नियज्ञ घी, अन्न, फल, फूल इत्यादि की आहुति देने के लिए किया जाता है, जिससे भगवान् विष्णु इन्हें खाकर सन्तुष्ट हों। भगवद्गीता (९.२६) में भगवान् कहते हैं— पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपहृतम् अश्नामि प्रयतात्मन: ॥
“यदि कोई मुझे प्रेम तथा भक्ति के साथ एक पत्ती, एक फूल, फल या जल अर्पित करता है, तो मैं उसे ग्रहण करता हूँ।” अतएव यज्ञ-अग्नि में ये सभी वस्तुएँ अर्पित की जाने से भगवान् विष्णु प्रसन्न हो जाएँगें। इसी प्रकार ब्राह्मण-भोजन की भी संस्तुति की जाती है क्योंकि जब ब्राह्मण लोग यज्ञ के पश्चात् बचे हुए भव्य भोजन को खाते हैं, तो इससे एक प्रकार से साक्षात् भगवान् विष्णु भोजन करते होते हैं। अतएव वैदिक सिद्धान्त संस्तुति करते हैं कि प्रत्येक उत्सव या पर्व पर अग्नि में आहुतियाँ डाली जाये और ब्राह्मणों को खाने के लिए अच्छा भोजन दिया जाय। ऐसे कार्यों से गृहस्थ स्वर्गलोक तथा ऐसे ही अन्य उच्चलोकों को जाता है।