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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 17: भगवान् को अदिति का पुत्र बनना स्वीकार  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  8.17.18 
त्वयार्चितश्चाहमपत्यगुप्तये
पयोव्रतेनानुगुणं समीडित: ।
स्वांशेन पुत्रत्वमुपेत्य ते सुतान्
गोप्तास्मि मारीचतपस्यधिष्ठित: ॥ १८ ॥
 
शब्दार्थ
त्वया—तुम्हारे द्वारा; अर्चित:—पूजित होकर; —भी; अहम्—मैं; अपत्य-गुप्तये—तुम्हारे पुत्रों की सुरक्षा करते हुए; पय: व्रतेन—पयोव्रत द्वारा; अनुगुणम्—जहाँ तक सम्भव है; समीडित:—ठीक से पूजित; स्व-अंशेन—अपने पूर्ण अंश द्वारा; पुत्रत्वम्—तुम्हारा पुत्र बनकर; उपेत्य—इस अवसर का लाभ उठाकर; ते सुतान्—तुम्हारे अन्य पुत्रों को; गोप्ता अस्मि—सुरक्षा प्रदान करूँगा; मारीच—कश्यपमुनि की; तपसि—तपस्या में; अधिष्ठित:—स्थित ।.
 
अनुवाद
 
 तुमने अपने पुत्रों की रक्षा के लिए मेरी स्तुति की है और महान् पयोव्रत रखकर मेरी समुचित पूजा की है। मैं कश्यपमुनि की तपस्या के कारण तुम्हारा पुत्र बनना स्वीकार करूँगा और इस प्रकार तुम्हारे अन्य पुत्रों की रक्षा करूँगा।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥